Ek Mulakaat tumse - 1 in Hindi Love Stories by Prem Nhr books and stories PDF | एक मुलाक़ात तुमसे - 1

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एक मुलाक़ात तुमसे - 1

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'एक मुलाकात तुमसे...01'
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अरे! वाह तुम आ गई.. दरवाजे पर क्यों खड़ी हो?
"आओ अन्दर आ जाओ...।" देखो बाहर बारिश आने वाली है... आज ठंड भी कुछ ज्यादा बढ़ गयी है।
माँ आज ही किसी जरूरी काम से ननिहाल गयी हैं और पापा भी अपने दोस्त के बेटे की शादी में गए हैं।
माँ-पिताजी भी घर में होते तो तुमसे मिलकर बहुत खुश होते...।
अच्छा पहले आराम से बैठो और ये लो पानी पियो...
ऐसे घबरा क्यों रही हो देखो यहाँ डर कैसा इसे भी अपना ही घर समझो...।
...आज माँ घर में नहीं है तो मैं तुम्हें स्वयं अपने हाथों से चाय बनाकर पिलाता हूँ...।
"रसोई किधर है? चाय मैं बना देती हूँ...।" कहकर तुमने घर में आने के बाद पहली बार अपनी खामोशी को तोड़ा...।

...नहीं तुम पहली बार मेरे घर आयी हो तो चाय भी मैं ही बनाऊँगा, कहकर मैंने रसोई में जाकर गैस चूल्हे पर चाय चढ़ा दी।
तुम भी तो कभी-कभी अपनी नज़रें उठाकर कभी मुझे तो कभी घर को देख रही थी।
इतने में चाय तैयार हो गयी और फिर हम दोनों ने एक साथ चाय पी...।
चाय पीने के बाद तुम कुछ सहज हो गयी थी...।
सुनो...
मेरे दो-तीन बार पुकारने के पर भी तुम नीची नजरें करके अपनी कलाइयों में पहनी लाख की जयपुरी चूड़ियों को घुमाने का उपक्रम करती रही...।
तब मैं तुम्हारे सामने ही बैठ गया और तुम्हारे हाथों को अपने हाथों से थाम लिया... तब तुम शर्म से दोहरी होती जा रही थी।
मेरे बार-बार कहने पर तुमने मेरी ओर देखा... उफ़्फ़ इतनी खूबसूरती, वाह! कितनी मासूमियत झलक रही थी तुम्हारी आँखों से और सुकोमलता को मैं लफ़्जों से बयां करने में असमर्थ हूँ ...आहा! मैं तो तुम्हारी सुन्दरता को अपलक निहारता ही रह गया...।

कॉफ़ी कलर के कुर्ते पर पिंक और गोल्डन वर्क... साथ ही गले पर दुप्पटा भी गोल्डन घेरे वाला डाल रखा था... और तुमने पिंक चूड़ीदार पहन रखा था... जो तुम्हारे नैसर्गिक सौंदर्य को अप्रतिम और तुम्हारे रूप को अनुपम बना रहा था...।



तुमने अपने कानों में रजत के रत्नजड़ित और रेशमी धागों से बने झुमके पहन रखे थे... जो कि तुम्हारी लम्बी गर्दन की शोभा को और अधिक बढ़ा रहे थे...।
तुमने अपने होठों पर हल्की गुलाबी लिपस्टिक लगा रखी थी और अपनी नाक में एक छोटी बाली पहन रखी थी, जिसमें छोटे-छोटे नगीने जड़े हुए थे... उस समय वो बाली ठीक उसी तरह से चमक रही थी जैसे गुलाब की पंखुड़ियों पर ओस की बूँदें मोतियों सी चमक रही हों...।
तुमने चाँदी की कढ़ाई वाली बीकानेरी जूतियाँ पहन रखी थी जो कि तुम्हारे चलने पर पायलों के घुँघरुओं के साथ मंद किन्तु मधुर ध्वनियों का संचार कर रही थी...।


"हृदय कमल सा खिल उठा, मेरे घर, तेरे आ जाने से।
ज्यों भ्रमर भी प्रसन्न होते, कलियों के खिल जाने से।।"


सहसा ही मैंने तुम्हें ये पंक्तियाँ कही थी...
तब एक और चमत्कार हुआ... तुम जो अब तक जड़वत सी थी अचानक से कुछ कहने लगी... तब तुम स्वयं को नहीं रोक पा रही थी...
तुम्हारे होठों से एक संगीतमय ध्वनि सी प्रस्फुटित होने लगी... और जो भी तुमने मुझे कहा था सब एकदम अप्रत्याशित था... मुझे आज भी याद है तुम्हारे मुखारविंद से निकला एक-एक शब्द...


"आज ना जाने क्यों मेरे दिल में दर्द सा है,
जैसे ज़िन्दगी पर कोई कर्ज़ सा है,
बर्फ़ सी जम गई हो सीने में जैसे,
इस कदर मन इतना बोझिल सा है...


(फिर तुमने एक दीर्घ निःश्वास छोड़ा और व्याकुल होकर कुछ पल मेरी ओर प्रश्नचिह्न दृष्टि से देखती रही... जैसे तुम अपनी कही बात पर मुझसे स्वीकृति चाह रही हो...।)

फिर तुमने इसी क्रम में कहना ज़ारी रखा...


...जाने क्यों दिल में दर्द सा...।
थोड़ी सी आँच मिल जाए तो,
फिर शायद ये बर्फ़ पिघल जाए,
दे दो मुझे अपनी साँसों की गर्मी,
बर्फ़ की जमी ये सिल
कि अश्क बनकर पिघल जाए,
तब शायद कुछ हल्की हो जाऊँ,
शायद तब मैं थोड़ी सी मुस्कुराऊँ,
बहुत दिन हुए मुझे रोए...
दे दो अपनी बाहें की
बहुत दिन हो गए
मुझे चैन से सोए...।।"


जब तुम कह चुकी तब तुम्हारी आँखों में मोती झिलमिलाने लगे... तब मैं अपने पर नियंत्रण करने की कोशिश करते हुए तुम्हारे आँसुओं को पोंछने लगा... मैं भी तो कहाँ कुछ कह पाया बस अपनी आँखों से ही इशारा कर तुम्हें रोने से रोकना चाहा...।

तब मैंने भी थोड़ा सम्हलकर कहना शुरू किया...


तुम क्यों बात करती हो रोने-रुलाने की,
मेरे सोये अरमान, सुप्त दर्द को जगाने की।
आओ तुम्हें मेरे हृदय से लगाऊँ...
अपनी धड़कनों को सुनाऊँ,
तुम्हें स्नेह से सहलाऊँ...
तुमने आज ये क्या माँग लिया?
मैं देना चाहता खुशी तुम्हें,
तुमने तो रोना माँग लिया.. अपने
आँसुओं का बह जाना माँग लिया...।
आज बहने दे इन आँसुओं को
बहा दो इनमें तेरे दुःख-दर्द सारे...।
कुछ कहो अपने मन की,
कुछ सुनो मेरे दिल की भी...
कहना था बहुत कुछ पर कह ना सका,
तुमने समझ ली मेरे दिल की बात भी, गुरु!
जो मैं लफ़्जों से भी कभी जता ना सका।।"


क्रमशः...

✍️परम


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